Tuesday, December 6, 2011

अचलेश्वर मंदिर ग्वालियर


विशेषता : नाम के अनुसार अचल मतलब  स्थिर, राजा माधवराज के द्वारा  इस मंदिर को बीच सड़क से रोड के किनारे करने के लिए हाथी, घोड़े से कई-कई बार प्रयास किया गया. परन्तु मंदिर को १ इंच भी हटा नहीं पाए. फिर राजा ने मूर्ति तोड़ने का आदेश दिया, लेकिन प्रतिमा पर कोई यंत्र कार्य नहीं किया. अंत में राजा ने मंदिर को बीच रोड पर रहने का आदेश दिया. 
आज भी ग्वालियर शहर में बीच रोड पर स्थित है. जबकि प्रमुख मार्गो सड़क बहुत चौड़ी हो चुकी है. 
दर्श्निथी लोगो संख्या : ५०,०००-१,००,००० लगभग  
स्थान : ग्वालियर रेलवे स्टेशन से ४ किमी दुरी पर. 
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Saturday, December 3, 2011

शिर्डी वाले साईं बाबा का गुरुवार का चमत्कारी व्रत

साईं बाबा व्रत कथा
साईं का उपदेश- "सबका मलिका एक"
अध्याय-१ "श्री साईं बाबा की कृपा"
एक समय की बात है. ममता जी व उनके पति रतनदेव अहमदाबाद में प्रेमपूर्वक रहते थे. लेकिन रतन का स्वभाव झगड़ालू था. अड़ोसी-पड़ोसी उनके स्वभाव से परेशान थे. लेकिन उनकी पत्नी ममता जी बहुत ही धार्मिक थी. भगवान पर विश्वास रखती थी. और बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती थी. धीरे-धीरे उनके पति का व्यवसाय ठप हो गया रतन जी दिन भर घर पर ही रहते. जिससे उनका स्वभाव और ज्यादा चिद्धिदा हो गया.
एक रोज ममता के द्वार पर एक साधू आए और उससे उन्होंने भिक्षा में दाल-चावल माँगा. ममता ने तुरंत हाथ धोकर महाराज को दाल-चावल दिए. और उन्हें नमस्कार किया. साधू महाराज ने खुश होकर उसे आशीर्वाद दिया और ममता के दु:खो को दूर करने हेतु उसे श्री साईं बाबा के गुरुवार वाले व्रत को करने की विधि समझाई. उन्होंने बताया कि इच्छा के अनुसार ५,७,९,११ या २१ गुरुवार तक साईं बाबा का व्रत करने, विधि से उद्यापन करने, गरोबो को भोजन करने से उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी. इस व्रत को करते समय झूठ, छल आदि समस्त बुरी आदतों का त्याग कर देना चाहिए. व्रत पूर्ण होने पर यथाशक्ति ७,११,२१,४१,१०१  किताबे दान करनी चाहिए. श्री साईं के वचन है श्रद्धा व सबूरी. इन्हें ध्यान में रखासर व्रत रखे. इस प्रकार व्रत करने से साईं बाबा तेरी सभी मनोकामनाए पूरी करेगे. इतने सरल व्रत को सुनकर ममता अत्यंत प्रसन्न हो गई और अगले गुरुवार से ही उसने "साईं बाबा व्रत" का पालन किया और देखते ही  देखते उसके पति के स्वाभाव में आश्चयर्जनक परिवर्तन आ गया और उसने फिर से व्यापर चालू किया जो सफल हुआ. घर पर श्री साईं बाबा की कृपा से सुख-शांति हो गई. 
एक दिन ममता की बहन और उसके पति उससे मिलने आए.रतन और ममता को कुषा देख वे भी प्रसन्न हुए. ममता की बहन ने उससे पूछा कि यह चमत्कार कैसे हुआ? मेरे बच्चे बिल्कुल पढाई नहीं करते और किसी का कहना नहीं मानते, बहुत उद्दंड होते जा रहे है, जिसकी वजह से सब-कुछा होते हुए भी में सुखी नहीं हू. तब ममता ने उसे साईं बाबा सा गुरुवार व्रत कि महिमा बताई. इस व्रत कि महिमा सुन ममता कि बहन प्रसन्न हुई. उसने पूर्ण मनोयोग से श्रद्धा व विश्वास से ९ गुरुवार तक यह व्रत किया और जिसका परिणाम यह हुआ कि उसके बच्चे मन लगाकर पढ़ते व हमेशा कक्षा में अव्वल आते और साथ ही साथ घर के छोटे-मोटे कम में भी उसका हाथ बताते. वह सभी लोगो  को इस महँ व्रत का प्रभाव बताने लगी और स्वाम भी इस व्रत का पालन करती रही. श्री साईं बाबा ने जैश कृपा उन पर कि, वैसी सभी पर करे. जो पते और सुने उसके भी सभी मनोरथ सिद्ध हो जाए.

अध्याय-
व्यवसाय में सफलता
मुंबई में एक व्यापारी जगदीश प्रसाद रहते थे. शहर में उनकी कपडे की कई मिलें थे. सभी प्रकार की सुख-सम्रद्धि थी. अचानक एक-एक कर सभी मिलों में मजदूरो ने हड़ताल कर दी. सेठ-जी बहुत परेशां होने लगे क्योकि मामला गंभीर था. व नेताओ के दबाव की वजह से मिले शुरू होने के आसार भी नहीं लग रहे थे.
ऐसे समय में सेठ-जी के एक दूर के रिश्तेदार का उनसे मिलने आना हुआ. बातो-बातो में सेठ-जी को गुरुवार वाला "साईं बाबा व्रत" करने को कहा. उसने कहा-अप और सेठानी दोनों एक साथ यह व्रत रखे, बाबा की कृपा से सब मंगल होगा. सेठ-सेठानी ने विधि-पूर्वक गुरुवार का व्रत शुरु किया और व्रत शुरु करने के दो सप्ताह के भीतर ही मजदूरो ने हड़ताल वापस ले ली और सभी मिले पुन: शुरु हो गई. साईं बाबा की कृपा से नुकसान में जा रहे जगदीश प्रसाद की एक वर्ष में ही  काफी लाभ हो गया. परिवार में सुख-संथी मिली. इसका सारा श्री सेठ-जी ने  "साईं बाबा व्रत" को दिया.

अध्याय-
शांति बहन की बेटी अनीता वैसे तो बहुल गुणवान थी लेकिन कलि थी. ऊपर से गरीब भी थी. बड़ा दहेज़ दे सकने की उसकी हौसियत नहीं थी. 
अनीता की उम्र विवाह योग्य हो गई थी, पर उसकी शादी हो नहीं पा रही थी. धीरे-धीरे उसकी आयु के साथ माता-पिता की चिंता भी बढने लगी. अनीता खाना पकाने, सिलाई-कड़ी आदि सभी कार्यो में बहुत कुशल थी. उसने एम.ए. किया हुआ था. स्वभाब से भी वह समझदार और हसमुख थी, पर फिर भी उसे योग्य वर नहीं मिल पा रहा था. एक दिन अनीता पड़ोस में अपनी सहेली के यहाँ गई तो देखा वह एक किताब पढ़ रही थाई. सुनीता ने पूछा "क्या पढ़ रही हो?" तब सहेली ने कहा यह "साईं बाबा की किताब है. हमारी मामी के यहाँ आज इस व्रत का उद्धापन था. जहा सभी का एक-एक किताब बाटी गई. जब अनीता ने किताब हाथ में ली और कुछ प्रष्ट पड़े तो सैबबा की कृपा से उसके मन में यह व्रत करने की इच्छा जाग्रत हुई, वह किताब सहेली से लेकर घर आ गई. गुरुवार को सुबह ११ गुरुवार तक व्रत करने की मन्नत मानकर अनीता ने साईं बाबा व्रत करने का संकल्प लिया. उसके मामाजी एक अच्छे घर के पढ़े-लिखे डॉक्टर का रिश्ता लेकर आए. अनीता की मामी और लड़के की माँ बचपन की सहेली थी. व अनीता की मामी ने लड़के से सीधे बात कर ली थी. अनीता सा बारे में सुनकर लड़का बहुत उएसहित था. उसे अनीता जैसी ही पत्नी की तलाश थी, जो पढ़ी-लिखी व सुनी हो और उसके साथ कदम से कदम मिलकर चल सके. अनीता यह सब जानकर बहुत खुश हुई. एक ही माह में सादगीपूर्ण समारोह में सुनीता का विवाह संपन्न हो गया. 

अध्याय-4
उधारी वसूल हो गई. 
दिनेश कुमार जी का प्लासिटक का थोक व्यापर था. परिवार में पति-पत्नी और एक पुत्र था. उनका व्यापर बहुत बड़ा नहीं था, पर परिवार की सुख-सुविधा के हिसाब से पर्याप्त था, परन्तु मुसीबत कह कर नहीं अति. उनके व्यापर में उधर देना जरुरी था, नहीं तो बाज़ार में प्रतिस्पर्हा में वे पीछे रह जाते. ऐसे ही एक व्यापारी की तरफ उनका बढ़ते-बढ़ते ३ लाख उधर फंस गया. उस व्यापारी की नियल में खोट आ गया. और वह रुपये चुकाने में तरह-तरह के बहाने करने लगा. 
अब तो दिनेश कुमार जी बहुत परेशान रहने लगे. उन्हें कंपनी की तपफ़ से तगोदे पर तगोदे होने लगे. उनके अनुसार एक माह में यदि उन्होंर कंपनी का पैसा जमा नहीं करवाया तो कंपनी उन्हें मॉल देना बंद कर देगी. दिनेश की तो रातो की नीद उड़ गई, न तो उन्हें भोजन में रस अत था न ही किसी और बात में. 
एक दिन दिनेश चिंता में बैठे थे, तभी उनके मित्र वर्मा जी आ पहुचे. वर्मा के पूछने पर दिनेश ने उन्हें अपनी चिंता का कारण बताया. वर्मा जी ने कहा-"बस इतनी-सी बात! दिनेश साडी चिंता छोड़ दीजिए और श्री साईं बाबा की शरण लीजिए. गुरुवार वाला साईं बाबा व्रत कलियुग में तत्काल फल देने वाला है, इसे ख़ुशी-ख़ुशी आरंभ करे और चमत्कार देखे. ऐसा कहकर शर्मा-जी ने उन्हें साईं बाबा व्रत कथा की किताब दी और व्रत विधि समझाई.
दिनेश जी ने सपत्नी श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत का आरम्भ किया. व्रत आरंभ करने के चौथे ही दिन वह व्यापारी उनकी दुकान पर आया और कहने लगा की उनका मॉल बेचकर उसे बहुत लाभ हुआ. उन्हें अगले मॉल की जल्द जरुरत  है. साथ ही, उसने पुराना पूरा पैसा तो चुकाया ही, अगले मॉल के भी रूपये अग्रिम दे गया और रुपने चुकाने में हुई देरी हेतु उसने क्षमा मांगी.
दिनेश तो श्री साईं बाबा की ऐसी कृपा देख भाव विभोर हो गए. जो रकम वह डूब चुकी मान रहे थे, वह तो वापस आई ही, व्यापर में भी लाभ हो गया. इस अनुपम व्रत का लोगो को अधिक से अधिक लाभ हो, इसलिए इस व्रत की १०१ किताब अपने स्नेहीजनो में वितरित की.
अध्याय-5
औलाद का सुख 
सुभाष और संगीता के विवाह को १५ साल हो गए थे परतु उनको संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ था. जिसकी वजह से घर में सब कुछ होने पर भी खालीपन-सा रहता था. सास-ससुर भी घर में नन्ही किलकारियां सुनने को तरस गए थे. डॉक्टर  को दिखने के बाद भी वह औलाद का सुख के लिए तरस गए थे.
तभी एक दिन सुभाष के ऑफिस में उसी माह मुंबई से  वदिली होकर आए रमेश ने सभी को लड्डू बाते. सुभाष के पूछने पर उसने बताया कि- साईं बाबा व्रत कि क्रिया से शादी के १० साल बाद उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई है. सुभाष द्वारा पूछने पर उन्होंने उसे पूरी व्रत-विधि समझाई और अगले ही दिन "साईं बाबा व्रत" की एक किताब दी. संगीता ने पुरे विश्वास और श्रद्धा से ९ गुरुवार व्रत किया और श्री साईं बाबा की क्रिया से शीघ्र ही वह गर्भवती हुई और एक बालक को जन्म दिया. अपने कुलदीपक को देख पूरा परिवार प्रसन्न हो गया.
अध्याय-6

ट्रांसफर रुक गया. 
शिल्पा एक कम्पनी में नौकरी करती थी. एक दिन उनका ट्रांसफर आर्डर आया. उनका ट्रांसफर लखनऊ से बहुल दूर अर्गा हो गया. ऊपर से उनकी माता जी की तवियत और ठीक नहीं चल रही थी. जिसकी वजह से वह बहुत परेशान रहती थी. उन्होंने कई लोगो से विनती की लेकिन ट्रांसफर नहीं रुका और आर्डर मिला की १० दिन के अन्दर यदि आगरा ऑफिस में हाजिर न हुए तो नौकरी से निकल दिया जावेगा. संयोगवश उसी दिन उसकी सहेली नंदिता  उससे  मिलने आयी. शिल्पा ने अपनी परेशानी नंदिता से कही. नंदिता ने उससे सैबबा का ९ गुरुवार श्रद्धापूर्वक व्रत रखने को कहा. चुकी उसके दुसरे दिन ही गुरुवार था सो उसने दिन से ही व्रत रख लिया. व्रत रखने के तीसरे दिन  ही पत्र मिला की उसका ट्रांसफर रुक गया है. अब तो साईं बाबा की प्रति उसका विश्वास और भी बढ़ गया. धीरे-धीरे ३ गुरुवार बीतने पर उसकी माताजी की भी तबियत ठीक हो गई. ९ गुरुवार तक व्रत कर उसने विधिपूर्वक उद्धापन किया. गरोबो को भोजन दिया और साईं महिमा का प्रचार करने की लिए साईं व्रत की ५१ किताब बांटी.

ऐसी है "श्री साईं बाबा व्रत" की महिमा! प्रेम से बोलो-
//अनंत कोटि ब्रह्मंड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईं नाथ महाराज की जय//

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Thursday, December 1, 2011

हनुमान-जी की व्रत-कथा

हनुमान-जी की व्रत-कथा 
एक बार गंगाजी के पावन तट पर विराजमान श्री सूत-जी महाराज से शौनकादी ऋषियों ने निवेदन किया- "हमे किसी श्रेष्ट व्रत का विधान बता दे. श्री सूत-जी महाराज  बोले कि- ऋषिगण! अपने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है. एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने प्रथापुत्र युधिष्ठिर को गुप्त संपत्तियों के निधि स्वरुप तथा नष्ट राज्य की प्राप्ति करने वाला श्री हनुमान-जी का व्रत कहा था. उन्होंने बताया कि यह व्रत भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी के लिए कहा था.  द्रोपदी ने हनुमान व्रत का आरंभ किया और उनका डोरा गले में बांध लिया. किसी समाया अर्जुन ने उस सोरे को बंधा   देखा तो बोले- "यह व्यर्थ का डोरा क्यों बांधा है ?" द्रोपदी ने मधुर शव्दों में कहा- "भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार मैं हनुमान व्रत करती हुआ. यह डोरा उसी का है. यह सुनकर अर्जुन क्रुद्ध हो  गए और बोले- "अरे! वह बन्दर तो हमारे रथ की ध्वजा पर निरंतर लटका रहता है, वह तुम्हे क्या दे सकता है? श्री कृष्ण भी तो कपटी है, उन्होंने हसी में ऐसा कह दिया होगा. अब तुम इस डोरे को उतारकर फेक दो." द्रोपदी को अर्जुन की आज्ञा माननी पड़ी. उसने उस डोरे को गले से खोलकर उधन में सुरक्षित रखा दिया. हे  युधिष्ठिर! हनुमान-जी के डोरे का परित्याग ही तुम्हारी वर्तमान विपित्त का कारण है. उसी के फलस्वरूप तुम्हारा प्राप्त ऐश्वर्य सहसा नष्ट हो गया. उस डोरे में तेरह ग्रंथियां  है, इसलिए तुम्हे तेरह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा. यदि उस डोरे का परित्याग न किया तो यह तेरह वर्ष सुखपूर्वक ही व्यतीत होते.
जब व्यास-जी यह चर्चा कर रहे थे तब द्रपादी भी वहां मौजूद थी. उसने स्वीकार किया कि- "भगवन श्री वेदव्यास का कथन सत्य है." व्यास-जी पुन: बोले- "हे युधिष्ठिर! यदि तुम इस व्रतकथा को सुनना चाहते हो तो ध्यानपूर्वक सुनो.-
जब श्री सीता-जी की खोज करते हुई भगवन रामचंद्र-जी अपने अनुज सहित ऋष्यमूक पर्वत पर पधारे तब उन्होंने सुग्रीव के साथ हनुमान-जी को भी देखा और तब हनुमान-जी ने उनके साथ मित्रता स्थापित की और बोले-" हे महाबोहो श्री रामचंद्र-जी मैं आपका कार्य करने को आतुर हूँ. आपका भक्त हुआ. पहले इन्द्र ने मेरी हनु पर व्रज से प्रहार किया था इसीलिए पृथ्वी पर मैं हनुमान नाम से विख्यात हुआ. उस समय मेरे पिता वायु, क्रोध में यह कहरे हुए अद्रश्य हो गए कि जिसने मेरे पुत्र को मारा है. उसे नष्ट कर दूगा. तदनन्तर ब्रह्मा देवताओ ने प्रकट होकर कहा- हे अंजनीपुत्र! तुम्हारे लिए इस वज्र का प्रहार व्यर्थ है और तुम अमित पराक्रमी होकर अपने व्रत के नायक होकर राम कार्य को करो. तुम्हारे इस व्रत के करने वाले की सभी कामनाए  पूर्ण होगी. इस व्रत का अनुष्ठान पहले श्री राम चन्द्र-जी ने भी किया था. यह कहकर देवगण चले गए. अब हे नाथ! हे रामचंद्र जी! आप इस व्रत को अवश्य कीजिए."
हनुमान जी की बात का समर्थन आकाशवाणी ने भी किया. तब श्री राम ने हनुमान-जी से व्रत का विधान पूछा. तब हनुमान जी बोले- "जब मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में तेरह घटी त्रयोदशी व अभिजित नक्षत्र हो तब पीले डोरे में तेरह गत लगाकर उसे कलश में रखे और फिर 'ॐ   नमो भगवते वायुनान्दनाय' मंत्र से मेरा आवाहन तथा पीले चन्दन, पीले पुष्प और अर्चानोचित सामग्री से मेरा पूजन करे. पूजन में ॐकार मंत्र द्वारा षोडशोपचार करने चाहिए. गेहूं के आटे के तेरह मालपुआ, तांबूल व दक्षिणा ब्राह्मण को दे तथा भोजन भी कराए. यह व्रत तेरह वर्ष पूर्ण होने तक नियमपूर्वक करे तथा तेरह वर्ष बाद विधिवत उद्यापन करे. "इस प्रकार हनुमान जी ने कहा. यह व्रत लक्ष्मण जी, विभीषण, सुग्रीव व श्री राम चन्द्र जी भी किया था. इस व्रत का साधन करने वाले साधक की शिर हनुमान जी सहायता करते है.   हे युधिष्ठिर! इस मार्गशीर्ष मास में तुम भी इस व्रत को करो तो तुम्हे राज्य की पुन: प्राप्ति हो सकती है.
व्यास जी द्वारा व्रत की ऐसी महिमा सुनकर समुद्र तट पर रात्रि व्यतीत करने के पश्चात् दुसरे दिन  युधिष्ठिर ने व्यास जी के समाखा ही द्रोपती के साथ यह व्रत, प्यास मिया घ्रात्ता हवि से होम तथा  'ॐ   नमो भगवते वायुनान्दनाय'  से श्री हनुमान जी का आवाहन पूजन किया. इसके फलस्वरूप युधिष्ठिर को उसी वर्ष राज्य की पुन: प्राप्ति हो गई. इसलिए हे ऋषि-गण! अप भी इस व्रत को करसे सफल मनोरथ को प्राप्त कर सकते है. तब उन ऋषियों ने भी इस श्री हनुमान व्रत को किया. 
इस हनुमान-व्रत सबंधी कल्प का पथ करने, सुनने तथा सुनाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते है. यह व्रत चोरो वर्णों के लिए है क्योकि इसके करने से ब्राह्मण वेद-पारंगत, क्षत्रिय ऐश्वर्य व अमित पराक्रम से युक्त, वैश्य कुबेर से सामान धन का स्वामी तथा शुद्र भी कृषि-साधन संपन व अत्यंत धनी हो जाता है. रोगी रोग मुक्त, पुत्रार्थी पुत्रवान, मोक्षथ्री मुक्त तथा धनी होता है. सभी अंग उपागो सहित श्री हनुमान जी का पूजन कर  'ॐ   नमो भगवते वायुनान्दनाय'  मंत्र से तीन बार अभिमंत्रित किये हुए चन्दन को अपने मस्तक पर लगा लेने से सभी प्राणी वश में हो जाते है. इस विधि से रजा भी वष में होता है तथा घर से निकलने पर विजय प्राप्त करके हो लौलता है. इसके पथ से राजद्वार, सगरम, सभा, व्यव्हार, अग्नि, वायु, आदि का भय दूर हो जाता है. हनुमान व्रत के तेरह गांठ वाले डोरे को कंठ या दाई भुजा में धारण करने से सभी कामनाए पूर्ण होती है. चोरो वर्णों के मौश्यो, विशेषकर महिलाओ के लिए यह व्रत सर्व सम्पत्ति प्रदान करता है. हे पावन-पुत्र! हे भविष्य विधाता! हे अभिष्ट्ता! हे श्री राम भक्त! आपको बारम्बार नमस्कार है. 
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भाग्य को बनाए अपना सारथी

इन्सान का यदि भाग्य साथ दे, 
तो इन्सान के  जीवन में ४ चाँद लग जाते है.

इन्सान का यदि भाग्य साथ न दे, 
तो इन्सान को दर-दर की ढोकर खानी पड़ती है. 


क्या है भाग्य.
मेरे अनुसार "भाग्य ऐसा मित्र या शत्रु है. जो आपके जीवन में उतार चढ़ाओ ला सकता है." 




हमे भाग्य की जानकारी कैसे होगी.
  1. अंक  ज्योतिष
  2. ज्योतिष
  3. रतन ज्योतिष
  4. वास्तु शास्त्र 
  5. हस्त रेखा ज्ञान

अंक  ज्योतिष (भारती अंक विज्ञानं) :
आपकी जन्म दिनांक को  अंक का योग आपका Lucky अंक कहलाता है. 
उदाहरण: अपना जन्म दिनांक 12/12/1990 है 1+2+1+2+1+9+9+0=25=2+5=7


हस्त रेखा ज्ञान :
गर्भावस्था के दौरान ही शिशु के हाथ में लकीरो का जाल बुन जाता है, जो कि जन्म से लेकर मृत्यु तक रेखाओ के रुप में विद्यमान रहता है। इसे हस्त रेखा (Palm line) के रुप में जाना जाता है। सामान्यतया 16 वर्ष तक की आयु के बच्चो की हाथों की रेखाओ में परिवर्तन होता रहता है।
सोलह वर्ष की आयु होने पर मुख्य रेखाएँ (जीवन रेखा, भाग्य रेखा इत्यादि) (Life line, Fortune line) स्थिर हो जाती है तथा कर्मो के अनुसार अन्य छोटे-बडे परिवर्तन होते रहते हैं। तथा ये परिवर्तन जीवन के अंतिम क्षण तक होते रहते हैं (Life line keep on changing throughout life)। 


चूंकि हस्त रेखा (Samudrik Shastra) 
विज्ञान कर्मो के आधार पर टिका है, इसलिए मनुष्य जैसे कर्म करता है वैसा ही परिवर्तन उसके हाथ की रेखाओ में हो जाता है (Palmistry stand by our work, palm line change with them)। हाथ का विश्लेषण करते समय सबसे पहले हम हाथ की बनावट को देखते हैं तत्पश्चात यह देखा जाता है कि हाथ मुलायम है या सख्त।आम तौर पर पुरुषो का दायाँ हाथ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखा जाता है।यदि कोइ पुरुष बायें हाथ से काम करता है तो उसका बायाँ हाथ देखा जाता है। हाथ में जितनी कम रेखाऎं होती हैं, भाग्य की दृष्टि से हाथ उतना ही सुन्दर माना जाता है 
(Lots of Palm line are not good for Fortune)

हाथ में मुख्यतः चार रेखाओ का उभार स्पष्ट रुप से रहता है( We can see four main line in palm) 


जीवन रेखा (Life Line)
जीवन रेखा हृदय रेखा के ऊपरी भाग से शुरु होकर आमतौर पर मणिबन्ध पर जाकर समाप्त हो जाती है (Life line start from heart line and end on Manibandh line)। यह रेखा भाग्य रेखा के समानान्तर चलती है, परन्तु कुछ व्यक्तियो की हथेली में जीवन रेखा हृदय रेखा में से निकलकर भाग्य रेखा में किसी भी बिन्दु पर मिल जाती है।जीवन रेखा तभी उत्तम मानी जाती है यदि उसे कोइ अन्य रेखा न काट रही हो तथा वह लम्बी हो इसका अर्थ है कि व्यक्ति की आयु लम्बी होगी तथा अधिकतर जीवन सुखमय बीतेगा। रेखा छोटी तथा कटी होने पर आयु कम एंव जीवन संघर्षमय होगा(If there is breakage in life line or there is any cut it means your life is short and in struggle)।


भाग्य रेखा:(Fate Line)
हृदय रेखा के मध्य से शुरु होकर मणिबन्ध तक जाने वाली सीधी रेखा को भाग्य रेखा कहते हैं (Straight Line start from middle of heart and end on Manibandh line called fate line) ।स्पष्ट रुप से दिखाई देने वाली रेखा उत्तम भाग्य का घौतक है।यदि भाग्य रेखा को कोइ अन्य रेखा न काटती हो तो भाग्य में किसी प्रकार की रुकावट नही आती।परन्तु यदि जिस बिन्दु पर रेखा भाग्य को काटती है तो उसी वर्ष व्यक्ति को भाग्य की हानि होती है।कुछ लोगो के हाथ में जीवन रेखा एंव भाग्य रेखा में से एक ही रेखा होती है।इस स्थिति में वह व्यक्ति आसाधारण होता है, या तो एकदम भाग्यहीन या फिर उच्चस्तर का भाग्यशाली होता है (If there is no fortune line on your palm it means you are not a middle class)। ऎसा व्यक्ति मध्यम स्तर का जीवन कभी नहीं जीता है।


हृदय रेखा: (Heart Line) 
हथेली के मध्य में एक भाग से लेकर दूसरे भाग तक लेटी हुई रेखा को हृदय रेखा कहते हैं (Vertical line starts from middle of palm and end on heart line called heart line)। यदि हृदय रेखा एकदम सीधी या थोडा सा घुमाव लेकर जाती है तो वह व्यक्ति को निष्कपट बनाती है। यदि हृदय रेखा लहराती हुई चलती है तो वह व्यक्ति हृदय से पीडित रहता है।यदि रेखा टूटी हुई हो या उस पर कोइ निशान हो तो व्यक्ति को हृदयाघात हो सकता है(There is Chance of heart attack if heart line is break)।


मस्तिष्क  रेखा:(Brain Line) 
हथेली के एक छोर से दूसरे छोर तक उंगलियो के पर्वतो तथा हृदय रेखा के समानान्तर जाने वाली रेखा को मस्तिष्क रेखा  कहते हैं (Parallel line to heart line is called mind line)। यह आवश्यक नहीं कि मस्तिष्क रेखा एक छोर से दूसरे छोर तक (हथेली) जायें, यह बीच में ही किसी भी पर्वत (Planetary Mounts) की ओर मुड सकती है। यदि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा आपस में न मिलें तो उत्तम रहता है (Brain line is good if mind line or heart line are not together)। स्पष्ट एंव बाधा रहित रेखा उत्तम मानी जाती है। कई बार मस्तिष्क रेखा एक छोर पर दो भागों में विभाजित हो जाती है। ऎसी रेखा वाला व्यक्ति स्थिर स्वभाव का नहीं होता है, सदा भ्रमित रहता है।
रत्नों में चमत्कारी शक्ति है जो ग्रहों के विपरीत प्रभाव को कम करके ग्रह के बल को बढ़ते है. आइये जानें कि भाग्य को बलवान बनाने के लिए रत्न किस प्रकार धारण करना चाहिए.


रत्नों की शक्ति (Power of Gemstones)
रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए. रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा का भी ख्याल रखना चाहिए. रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है. अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलम्ब होता है.


लग्न और रत्न (Ascendant And Gemstones)
लग्न स्थान को शरीर कहा गया है. कुण्डली में इस स्थान का अत्यधिक महत्व है. इसी भाव से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विचार किया जाता है. लग्न स्थान और लग्नेश की स्थिति के अनुसार जीवन में सुख दु:ख एवं अन्य ग्रहों का प्रभाव भी देखा जाता है. कुण्डली में षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में लग्नेश का होना अशुभ प्रभाव देता है. इन भावों में लग्नेश की उपस्थिति होने से लग्न कमजोर होता है. लग्नेश के नीच प्रभाव को कम करने के लिए इसका रत्न धारण करना चाहिए.


भाग्य भाव और रत्न (Gemstones and Fortune)
जीवन में भाग्य का बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. भाग्य कमज़ोर होने पर जीवन में कदम कदम पर असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है. भाग्य मंदा होने पर कर्म का फल भी संतोष जनक नहीं मिल पाता है. परेशानियां और कठिनाईयां सिर उठाए खड़ी रहती है. मुश्किल समय में अपने भी पराए हो जाते हैं. भाग्य का घर जन्मपत्री में नवम भाव होता है. भाग्य भाव और भाग्येश अशुभ स्थिति में होने पर नवमेश से सम्बन्धित रत्न धारण करना चाहिए. भाग्य को बलवान बनाने हेतु भाग्येश के साथ लग्नेश का रत्न धारण करना अत्यंत लाभप्रद होता है. 


तृतीय भाव और रत्न (Gemstone for Third house)
जन्म कुण्डली का तीसरा घर पराक्रम का घर कहा जाता है. जीवन में भाग्य का फल प्राप्त करने के लिए पराक्रम का होना आवश्यक होता है. अगर व्यक्ति में साहस और पराक्रम का अभाव हो तो उत्तम भाग्य होने पर भी व्यक्ति उसका लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाता है. आत्मविश्वास का अभाव और अपने अंदर साहस की कमी महसूस होने पर तृतीयेश से सम्बन्धित ग्रह का रत्न पहना लाभप्रद होता है.


कर्म भाव और रत्न (Gemstone for Tenth House)
कर्म से ही भाग्य चमकता है. कहा भी गया है "जैसी करनी वैसी भरनी" ज्योतिष की दष्टि से कहें तो जैसा कर्म हम करते हैं भाग्य फल भी हमें वैसा ही मिलता है. भाग्य को पब्रल बनाने में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान होता है. भाग्य भाव उत्तम हो और कर्म भाव पीड़ित तो इस स्थिति भाग्य फल बाधित होता है. कुण्डली में दशम भाव कर्म भाव होता है. अगर कुण्डली में यह भाव पीड़ित हो अथवा इस भाव का स्वामी कमज़ोर हो तो सम्बन्धित भाव स्वामी एवं लग्नेश का रत्न पहनाना मंगलकारी होता है.


रत्न और सावधानी (Gemstone Precautions)
रत्न धारण करते समय कुछ सावधानियों का ख्याल रखना आवश्यक होता है. जिस ग्रह की दशा अन्तर्दशा के समय अशुभ प्रभाव मिल रहा हो उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न पहनना शुभ फलदायी नहीं होता है. इस स्थिति में इस ग्रह के मित्र ग्रह का रत्न एवं लग्नेश का रत्न धारण करना लाभप्रद होता है. रत्न की शुद्धता की जांच करवाकर ही धारण करना चाहिए धब्बेदार और दरारों वाले रत्न भी शुभफलदायी नहीं होते हैं.

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मनोकामना पूरी होती है दरवार में


भिंड जिले का सबसे प्राचीन मंदिर जिसका का निर्माण राजा पृथ्वी राज चौहान ने करवाया. 
इतिहास : दिल्ली  का राजा  पृथ्वी राज चौहान अपनी सेना लेकर  भिंड जिले से गुजर रहा था. तो विश्राम के लिए रुका तो उसे शिव जी ने स्वप्न में आदेश दिया इस जमीन कि खोदाई करवाओ में इस जमीन के अंदर हू. राजा के आदेश पर खोदाई हुई और भगवान शिव शंकर का लिंग बहार आया. इसके बाद राजा ने  १०१  मंदिर का निर्माण करवाया. 
विशेषता  :  अखंड ज्योति ११०० ई. से जल रही है. 
स्थान :  रेलवे स्टेशन से ८  किमी.  दुरी पर है 
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